लकीरें जो कहतीं हैं
बोलकर
शब्द शब्द
बनतीं धारणाएँ
होता सत्य का संधान
तमस से ज्योति की ओर
बुधवार, 30 दिसंबर 2015
रविवार, 20 दिसंबर 2015
पवित्रता की तलाश में
पवित्रता की तलाश में
समय की गर्द से बचे हुए
शब्द;
आग की हँसी
ऊर्जा में समाया
मैं तो यहाँ हूँ । ।
बुधवार, 25 नवंबर 2015
कविता
कहाँ से निकलती है कविता
जितने गहरे से निकलती है कविता
उतने ही गहरे पैठ जाती है कविता
दिल की गहराइयों को छू लेती है कविता
मन की ऊंचाइयों को पा लेती है कविता
शायद अतीत की यादों से निकलती है कविता
या मन के किसी कोने में छुपी टीस से उपजती है कविता
या विषाद , दुःख - दर्द से द्रवित होकर बहती है कविता
यह जो मन में छिपा बैठा है अहंकार
उससे भी दर्पित हुई है कविता
नित नई नई खोजों , कुछ पाने के उछाह में उमंगित हुई है कविता
उछाह , हर्ष , उमंग , टीस , वेदना , ईर्ष्या , द्वेष
सभी में छिपी है कविता
शायद जीवन का रस है कविता
हाँ, जीवन का रस है कविता ।
शनिवार, 7 नवंबर 2015
यह रास्ता
दिल के पार
प्यार की छांव तले
एक खिड़की
हजार दरवाजे ।
दुनिया के गांव में
मोहब्बतों की खेती
जीवन की अर्जी लगाता
आवारा बंजारा जीवन
यह रास्ता कहीं जाता है ???
शनिवार, 31 अक्तूबर 2015
अमृत बूँदें
1
शुरू करो
स्वयं से
मन को पूरी तरह तज
प्रेम में लगा
गोता
गहरा
करो
स्वीकार
स्वयं को ।
2
साक्षी
केवल
मौन
बैठा हुआ
देखता हुआ
जगत को
अमृत बूँदें
चाँदनी में आलोकित ।
शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015
Comments
Some comments received................ ****************************
Love the emu great painting.
- Tony Swell
Nice example of a modern expression of the middle eastern aesthetic.................
- Gerald Gardener
Nice painting Anupam. I like the design with the foreground and middle ground in the bottom half of the composition and the directional zigzag from bottom right corner to upper left. The muted colors look good and your texture in the upper two thirds is interesting and visually pleasing.
- Kit Kelley
गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015
क्यों
इतना मौन
क्यों ?
जवाब दो ।
टुकड़ों टुकड़ों
बँटी हसरतें
क्यों ??
जवाब दो ।।
गौरवशाली इतिहास
सीने से लगाए
जर्जर वर्तमान
क्यों ?
क्यों ??
क्यों ???
जवाब दो ।।।
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खुशियों भरे हुए पल यहाँ बिताने का धन्यवाद । आभार ।।
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Have a look on my latest abstract
" कर जोरि " प्रयाग जी में लेटे हुए श्रीराम भक्त ' श्री हनुमान जी '
सोमवार, 28 सितंबर 2015
जोग लिखी
दुर्लभ अपनत्व
आंखें मलता
जीवन संकल्प
कालचक्र
लिख रहा
नये पृष्ठ
पीछे छूटता
अन्तिम सत्य
ओ यायावर ,
रहे याद
कि
दिशाओं को
भी
खुला आसमान चाहिए ।
शनिवार, 19 सितंबर 2015
तुमसे
अनुपम गुप्त#190920150841
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शब्द बोलते हैं
माटी सुनती है
पुरवा डोलती है
मन सोचता है
धड़कन सुनती है
चूड़ियों की खनक
वक्त कहता है
आज सुनता है
स्वयं को सम्बोधित राग
समय के तराजू में
कुछ छूटी
कुछ याद आईं
कुछ खट्टी
कुछ मीठी
कुछ कच्ची
कुछ पक्की
कुछ कहती
कुछ सुनती
यादें
तुम सब जानती हो
समय सब जानता है ।
An abstract oil painting
-Anupam Gupta
मंगलवार, 15 सितंबर 2015
पार
अधर में
खग चहकते
गाती
नदिया धार
प्रतिध्वनित
कितने क्षण
ध्वनियों की
परिधि पार
एक लहर
जन्म लेते ही
देती जन्म
लहरों को
टूटती सीमाएँ
चंचल मन के पार
Thanks for your visit.
And below is an oil painting
by Anupam Gupta
पार
अधर में
खग चहकते
गाती
नदिया धार
प्रतिध्वनित
कितने क्षण
ध्वनियों की
परिधि पार
एक लहर
जन्म लेते ही
देती जन्म
लहरों को
टूटती सीमाएँ
चंचल मन के पार
Thanks for your visit.
And below is an oil painting
by Anupam Gupta
रविवार, 13 सितंबर 2015
बहता रहा
बहता रहा
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शाम को,
चाँद चुपचाप झाँका;
आकाश
और नीचे उतर आया ;
वह
शान्त
मधु सा
बहता रहा-
मेरे अंतस में
अविराम ।।
""""""""""
""""""""""
धैर्य पूर्वक समय देने के लिए आपका आभार।। स्वागतम् ।।
और आपको यह नवीनतम चित्र अवश्य पसंद आयेगा ।
An abstract digital creation - Anupam Gupta
शुक्रवार, 11 सितंबर 2015
।। हूँ ।।
समय दस्तक देता है
समय जीवन बदल देता है
मैं , वह समय ही तो हूँ ।
प्रेम दस्तक देता है
प्रेम जीवन बदल देता है
मैं , वह प्रेम ही तो हूँ ।
कवि दस्तक देता है
कवि सारी दुनिया बदल देता है
मैं वह कवि ही तो हूँ ।
आओ, नये क्षितिज की सृष्टि करें ।
आओ, समय के पार चलें।।
गुरुवार, 10 सितंबर 2015
मन ही राखो
जिंदगी का तराना
रेत सा झरता रहा
आँखों के आँसू
सन्नाटे में गिनता रहा
महफिलों में तुम
कहकहे पर कहकहे लगाते रहे
मैं अन्दर ही अन्दर काँपता रहा
शायद ही हो तुम्हें पता
तालियों की गड़गड़ाहट से
पेट नहीं भरता
इसीलिए
निज मन की व्यथा
मन ही राखो गोय
लिखता रहा ।।
बुधवार, 2 सितंबर 2015
मंगलवार, 1 सितंबर 2015
फिराक 28 अगस्त
28 अगस्त को भारतीय उपमहाद्वीप के महान कवि गोरखपुरी का जन्म हुआ था । फिराक परम्परा की गहरी समझ और आधुनिक संवेदना के मेल की वजह से न केवल अद्वितीय कविता की रचना कर पाए बल्कि बाद के कवियों के लिए भी एक मिसाल बने रहे ।उनके बाद की उर्दू की कविता पर सबसे गहरा असर फिराक का ही है ।
प्रस्तुत हैं फिराक के कुछ अश्आर .......
WhatsApp के बोल
WhatsApp के बोल
कांचीपुरम के 17वीं शती के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ ‘राघवयादवीयम्’ एक अद्भुत ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ को
‘अनुलोम-विलोम काव्य’
भी कहा जाता है,
इसमें केवल 30 श्लोक हैं,
इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है
और
विपरीत क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा।
इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक,
लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ,
तो बनते हैं 60 श्लोक।
उदाहरण के लिए देखें :
अनुलोम :
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ 1 ॥
विलोम :
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ 1 ॥
अनुलोम :
साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ 2 ॥
विलोम :
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ 2 ॥
क्या ऐसा कुछ अन्य भाषा में रचा जा सकता है ??? समस्त भाषाओं की जननी संस्कृत की विलक्षणता से सभी परिचित हों .......
रविवार, 30 अगस्त 2015
शुक्रवार, 28 अगस्त 2015
अभी
आकुल व्याकुल
सुधि हीन
नहीं कल
प्यारे मोहन ,
अब तो आओ
बसी नयनों में छवि तेरी
प्रकाश बन
हृदय में समा जाओ ।
दूर कहीं
बजती वंशी तेरी
झंकार बन
कानों में समा जाओ ।
आकुल व्याकुल
नहीं कल ;
कल नहीं
आज नहीं
अभी
मेरे मन को
दिव्य बना जाओ ।
ओ मोहन न्यारे !!!
A digital abstract creation
- Anupam Gupta
गुरुवार, 27 अगस्त 2015
सुनती है माटी
बंजारे
आवारा
चक्षु उन्मीलित
जब खुलते हैं
मिट्टी आकार लेती है
शब्द खिलते हैं ।।
शब्द खिलते हैं
एक रूह में बदल
करते ग्रहण
आकार नया
बजती बांसुरी
बसती
इक दुनिया
नई
खुलते नये आयाम
चतुर्दिक ।।
सुनती है माटी
बोलते हैं शब्द ।।
An abstract digital art
- Anupam Gupta
शनिवार, 22 अगस्त 2015
पुनः
जीवन
एक जुनून
जीवन
एक ज्योति
जीवन
एक आनन्द
परम आनन्द;
फलता
और
फूलता ।
जीवन जीने का कोई अवसर मत जाने दो ।
शास्त्रों से पूछ पूछ नियम बनाना छोड़ो ।।
तुम तुम हो
और
कृष्ण कृष्ण ;
राम राम हैं
और
तुम भी तो नहीं हो कम इंसान ।
इसलिए
गिरा दो
सारी आज्ञाकारिता को
और
पुनः प्राप्त करो
स्वयं को । ।
शुक्रवार, 21 अगस्त 2015
सम्पूर्ण
सांसें ही नहीं ;
पूरा जीवन हो तुम ।
धड़कन ही नहीं ;
पूरा जीवन हो तुम ।
यादें ही नहीं ;
पूरा जीवन हो तुम ।
कविता ही नहीं ;
पूरा जीवन हो तुम ।
केवल जीवन नहीं ;
सम्पूर्ण सत्य हो तुम ।।
उजाले से
फैला
दूर तक
अंतिम
काला प्रकाश
लगा लिया है
मैंने
एक टीका
चुरा , तुम्हारी आँखों के काजल से
अब
लगता है
डर
उजाले से ;
है सत्य यही
शायद
मौन रहना
नियति हमारी
अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ।
नदी आज भी बहती है
दूर कहीं
एक नदी बहती है
जिसके किनारे
राम भरत संग खेले
बहु धनुहीं तोरीं ।
दूर कहीं
एक नदी बहती है
जिसके पार
मृग स्वर्ण
छल अपार ।
दूर कहीं
एक नदी बहती है
समीप जिसके
धरती समाई सीता
राम ने ली जल समाधि ।
दूर कहीं
एक नदी बहती है
जिसके किनारे
कान्हा ने वंशी बजाई
जग को लुभाई ।
दूर कहीं
एक नदी
समुद्र में समाती है
कृष्ण समाधिस्थ होते हैं
शिकारी के शिकार में ।
आज भी
वह
" एक नदी बहती है "
दूर आसमान में
बार बार
एक ही गीत बजता है
कहते जिसे
प्यार
बार बार
एक ही बांसुरी बजती है
कहते जिसे
प्यार
दूरियां बढ़ती जाती
अंततः
प्रेम करना शेष रहता है
और
कुछ क्षणों का प्यार
एक
लंबी
अंतहीन
कविता में ढल जाता है
दूर आसमान में
चांद पर उग आता है
एक शब्द
जिसे तुम कहती हो
प्यार
जिसे मैं भी करता प्यार ।।
गुरुवार, 20 अगस्त 2015
आस्मां और भी हैं
तोड़ता
जोड़ता
टुकड़ों टुकड़ों
बंटा
मेरा
मन
पाकर
साथ तुम्हारा
पुनः पुनः
जुड़ जाता है
एक नया आयाम
क्षितिज के पार
आस्मां और भी है
जिंदगी
बहुत खूबसूरत है
जिंदगी ;
जिंदगी
बहुत खूबसूरत है ।
सुबह से शाम तक
शाम से रात तक ;
बहुत सुहावनी है जिंदगी ।
कौन करता आपको प्यार
प्यार से नहीं करता इनकार ;
ये खूबसूरत जिंदगी ।
बहुत खूबसूरत जिंदगी ।।
पर
जब आग से
दामन
लगे सुलगने
नफरतों के धर्म
लगें फैलने
सुबह से शाम तक
शाम से रात तक
सम्प्रदायों के ज्वालामुखी
उगलते हों बारूद
लोक के मंदिर में
बिछती बाजी
मौन हंगामी
तब भी
आपको
कौन करता प्यार
प्यार से नहीं करता इनकार
यही खूबसूरत जिंदगी ।
यह जिंदगी
जो
जीते हैं
खुद से प्यार करते हैं
दिलों में
नफरत नहीं
प्यार भरते हैं
बारूद नहीं
मुस्कान बिखेरते हैं
सुबह से शाम तक
शाम से रात तक
बहुत खूबसूरत है जिंदगी
जिंदगी बहुत खूबसूरत है । ।