शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

डॉ राजरानी के उद्गार

अक़्ल का सरमाया पास न हो
तो सरम भी
जल्दी चली जाती है ...... !
अक़्ल की तिजोरी
भरी दिखाने के चक्कर में
दिमाग़ी ग़रीब
जो करतब न कर लें वो कम हैं ... !
अंदर का अजूबापन ....
जमूरापन ...
सब बेमतलब बाज़ीगरी
करने में छलक जाता है !
नयेपन की खोज
बेख़ौफ़ बेवक़ूफ़ियों तक
अनजाने में ले जाती है
बेहूदापन मानो फ़ैशन है 
लाओ नये से नये
ग़लीज़ बेहूदगी भरे जुमले .... !
शायद छा जायें ....
फिर चाहे क्यों न
देश को बेच खायें ....
संस्कृति को चबा जायें
मूल्यों को गिरबी रख आयें ....
आत्मा को खूँटी पर
उलटा लटका आयें
पर नया अजूबा तो कर जायें !

राज ...




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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

प्रियंका ओम की कहानियों में

नाम कॉमन हो सकता है | पर कहानियाँ नही | सच लिखती हैं | बेहिचक लिखती हैं |  बिन्दास लिखती हैं | इन की कहानियों मे समाज का कड़वा सच है | ज़िंदगी की फंतासियाँ हैं तो , जादूई यथार्थ भी | रिश्तो की नाजुक डोर है, तो स्वार्थ की गाँठ भी …………………

इंग्लिश लिट्रेचर से ग्रेजुएट हैं और हिंदी से गजब का लगाव |
बचपन रेशम के शहर भागलपुर मे बीता, पर ज़िंदगी रेशमी नही रही |
लौहनगरी जमशेदपुर मे इरादे और हौसले दोनों जवान हुऐ  | फ़िर हाल  वे तंजानिया मे रह रही हैं …|||
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तुम्हारे लिये मेरा प्यार  मंदिर मे बजने वाली घंटियों सा था , त्वरित भी और स्वरित भी ,  लेकिन तुम मंदिर में स्थापित मूर्तियों से मौन, जो मुझे छोड़ आते थे मेरे ही वियाबान में ||
…[ खुदगर्ज प्यार ]…
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पैसा पावर और प्रमोशन, ऐसी बहुत सी जिजिविषा हैं   जिसके लिये उन्हे अपनी आत्मा को मारना पड़ता है और ज़िंदगी भर ढोतें हैं सिर्फ शरीर ...||
…[ इमोशन ]…
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मेरे अधूरे उपन्यास के पन्नो की तरह बिखरी हुई है तुम्हारी यादें …||
…[ यादों की डायरी ]…
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सिगरेट होठों से लगाने से पहले वो अपने होठों पर वेसलीन की एक परत लगाती | उसके होठ अब भी गुलाबी थे सिर्फ खून जलता था होठ नही..||
…[ वो अजीब लड़की ]…
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वो आयी तो थी अर्जुन को उसके कमाऐ पैसे खरच करने का तरीका बताने लेकिन खुद ही खरच हो गयी थी |  एक ही बार मे बिना सोचे समझे किसी एड्वाइजर की सलाह के अर्जुन ने एक चेक साईन करने के साथ साथ अपनी ज़िंदगी भी उसके नाम कर दी …||
…[ सॉरी ]…
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"तुम सौतेली हो" मन की दीवारो पर कील की तरह धँसती जा रही थी , और उपेक्षा हथौडी  की तरह बार बार उस पर प्रहार कर रही थी, पुराने फ़टे कपडो पर पैबंद और नये कपडे मे तुरपाई की तरह समाज और रिश्तो की लाज की खातिर पापा भूले बिसरे  याद कर लेते किंतु दबाव की वजह से चप्पल पर बन गये पैर के निशान और गीली मिट्टी पर बने निशान मे बहुत फर्क होता है | और वो फर्क बहुत साफ़ साफ़ दिख जाता है …||
…[ सौतेलापन ]…
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आज फेयरवेल पार्टी है , लेडी डारसी , विजय और शैलजा तीनो स्माईल कर रहे थे, शैलजा ने शिफान की साडी पहनी है और विजय ने ब्लू सर्ट ||
…[ फेयरनेस क्रीम ]…
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सुर्पनखा को एक और संबोधन  मिला था "भाभी जी" जो दूर से ही उसके कांन मे पड़ता था | लेकिन लाल बाबू के लिये अब वो सिर्फ "सुरपा" थी, एक दिन कहा भी था "जानती हो कुरुप घरवाली को ऐगो बहुत बड़ फ़ायदा है किसी का मन नही ललचाता |"
कह कर जोर से हसे थे लाल बाबू लेकिन सुरपा की आखों से आंसु तैर गये थे ||
…[ लाल बाबू ]…
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"वो जाना नही चाहती थी |" लेकिन जाना पडा था | क्यो कि मैने रोका नही | लेकिन कई हिंदी फ़िल्मो के द्र्श्य की तरह उसके इंतजार में मैं काफ़ी देर तक एअरपोर्ट के बाहर ही रुका रहा कि शायद जानबूझ कर  फ्लाइट छोड़ दे और फ़िर से मेरे पास लौट आये  | लेकिन ज़िंदगी कोई हिंदी फ़िल्म नहीं |
…[ फिरंगन की मोहब्बत ]…
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काश इस दुनिया मे ज़िंदगी के व्यापार होते तो इंसान उम्र के भी सौदे करता |
वैसे तो ज़िंदगी के सारे ही सच कड़वे ही होते हैं लेकिन कुछ सच इतने कड़वे होते हैं कि अपनी कड़वाहट से न केवल आपके समुचे अस्तिव को बल्कि आपकी समूची ज़िंदगी को विशैला कर देते हैं ||
…[ मौत की ओर ]…
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"हल्दी लगे, मडवा चढे
अम्मा का कलेजा फटे |"

अब अम्मा गुलाबी को क्या बताती कि जो सपना वह देख रही है वो तो कब का टूट गया है और उसकी किरचन ज़िंदगी भर गडेगी  | अल्हड़ गुलाबी को कहाँ पता था की उसकी अम्मा उसके बियाह की खुशी से नही दुख से रो रही है |
एक तरफ बड़की रनिया है तो दूसरी तरफ छोटकी | एक का जीवन सवर रहा है तो दूसरी का बरबाद हो रहा है ! कैसे बतायें बिटिया को  की अम्मा का कलेजा तलवार की धार पर है ||

…[ बाबा भोले नाथ की जय ]…
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अपने मन के विकार को भी शब्दो का मुखौटापहना दिया था | उन के लिये उनका नंगापन उत्सव था | उस महा पुरुष को उसके मन की विकृतिने एक साधारण सी स्त्री से समक्ष बौना बना दिया | घुटने टेक दिये हाथ जोड़ दिये | वो जादूई आखें गिरगिरा ऊठी | एक स्त्री के सब कुछ को उन्होने छुटटे पैसो की संज्ञा दी थी | ये उस महाज्ञानी की अज्ञानता नही तो और क्या थी ??
…[ दोगला ]…
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दूर से काँच के गिलास मे चाय गर्म खून , और जलती हूई सिगरेट चिता की लकडिया लग रही थी …||
…[ लवारिस लास ]…
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औरत का मन कच्ची मिट्टी सा होता है , जिस सांचे मे ढालो ढल जाता है | पूछने पर उसने कहा वो यायावर है, ज़िंदगी की खाक छानता यहाँ वहाँ भटकता रहता है | कुछ ढूँढ रहा है शायद, वो जो उससे बहुत पहले खो गया है | उसका अस्तिव दर्द मे डूबा हूआ है | एक ऐसा दर्द जिसे वो स्वयं भी नही पहचानता |  उसे किसी खास किस्म की जडी बूटी की तलाश थी जो उस के दिल के दर्द की दवा बन सके | उस के अंदर दिन रात कुछ जल रहा है | एक ऐसी आग जिस ने उसकी आत्मा को शम्शान बना दिया | सुकुन की तलास ने उस के अंदर एक निराशा भर दी है ऐसी निराशा उस के अंदर के सृजनत्मक उर्जा को जला डाला | किसी की तलास है उसे , वो न्श्वर शरीर का लोलुप नही | उसे तो उस आत्मा की तलास थी जिस के साथ सम्भोग कर के वो  अनंत मे विलीन हो जाय …||
…[ मृगमरीचिका ]…
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आप की सारी कहानिया बहुत अच्छी लगी.

[ Priyanka Om ]
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सोनप्रिया


From Sonpriya Series........

सुनो शोना
आज मेरा मन है डूब जाने का
बहुत गहरा , इतना गहरा कि सांस भी न ले सकूँ
कान , नाक , मुहँ , सब बंद हो जाएँ
बस डूबने का अहसास बचा रहे
जितना गहरा डूबो उतना ही गहरा आनंद
तुमने कहा था मैं फ़ना होने के रास्ते पे निकल चुकी हूँ
एक बार चल दो तो कोई लौटना नहीं , कोई ऑप्शन ही नहीं लौटने की
एक बार आनंद का अमृत चख लौटना भी कौन चाहेगा
यह तो ऐसी लत है जिसका कोई दवा -दारु नहीं

कुछ दिन पहले तुम्हारे भेजे हुए सब संदेसे जो कहीं खो गए थे , अचानक से बाहर आ गए
जैसे समुन्दर अपनी लहरों के साथ ढेर सारी सीपियाँ छोड़ गया हो रेत पे
एक -एक सीपी खोल कर एक -एक मोती निकाल रही हूँ और डूबती जा रही हूँ
किसी दिन यह समुन्दर सीपियाँ यहाँ छोड़ कर मुझे उठा कर ले जाएगा
पर अभी कुछ वक़्त है फ़ना होने में
कुछ काम बाकी हैं अभी
हाँ , यूँ तो काम कभी खत्म नहीं होते , ज़िंदगी के साथ -साथ चलते रहते हैं
पर मैंने एक तारीख़ मुकरर्र कर ली है
जानती हूँ , अपने हाथ में नहीं है कुछ भी , करने वाला तो सब वो ही है
पर फिर भी एक रेखा खींच देना कुछ तो रंग लाएगा
अरे नहीं , घबराओ मत , मैं मरने वाली नहीं अभी
वैसे भी यह मरना कोई मरना थोड़े ही है , तुम्ही तो कहते हो
असल मरना तो जीते जी होता है , अहं का मर जाना , अपनी मैं से ऊपर उठ जाना

अरे अरे , तुम तो उदास हो गए , ऐसे ही मैं भी हो गई थी जब एक बार तुमने कहा था
मैं शायद मरने वाला हूँ
और दूसरे ही पल मुझे लगा अगर तुम मर गए तो मेरा बेटा बन कर लौटोगे
नौं महीने मेरी कोख में रहोगे , इतना करीब , इतना ज़्यादा करीब
मेरी सांस में सांस लोगे
मेरी धड़कन में धड्कोगे
सब से ज़्यादा निश्चल प्यार एक औरत अपने बेटे को करती है , बिना किसी आस उम्मीद के
क्या पता मैं तुम्हारी बेटी बन कर आऊँ
जब तक सच में नहीं मर जाते , आना जाना तो लगा ही रहेगा , किसी न किसी रूप में मिलते ही रहेंगे
तो मौत कोई डरने की चीज़ नहीं है , उतस्व है , ज़िंदगी के जैसे ही
अवसर है खुद के , खुदा के एक कदम और करीब होने का

अब तुम कहोगे , माते आज इतने प्रवचन क्यों दे रही हो , यह तो मेरा क्षेत्र है
तुम्हारा मुर्शिद तो मैं ठहरा
हाँ , मुर्शिद भी , मेहबूब भी
कई बार सोचती हूँ , अब न करूँ तुम से मोहब्बत
तुम बहुत खराब हो
कितने -कितने दिन छोड़ के चले जाते हो
न कोई संदेसा , न खत , न पत्र , न कोई खोज ख़बर
पर , जानू , मजबूरी हो चुकी है मेरी
तुम से नहीं करती  मोहब्बत तो खुद से भी नहीं कर पाती
सारा जग जैसे सूना -सूना हो जाता है
न चिड़ियाँ चहकती हैं , न फूल महकते हैं , न चाँद मुस्कुराता है
मीठा , मीठा नहीं लगता , नमकीन , नमकीन नहीं लगता
जुबान जलती है तो पता चलता है चाय गर्म थी
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
तुमसे प्यार करती हूँ तो सारा ब्रह्माण्ड नाचता रहता है , गीत गाता रहता है
तुम्हारे इश्क़ में सारा जग है इबादतगाह , जहाँ मर्ज़ी बैठ कर कर लो सजदा
हर शै दिव्य , अलौकिक , क्या चेतन , क्या अचेतन
हर मौसम खुशगवार
आजकल ऐसे लग रहा है जैसे बसंत ऋतू हो हालंकि पेड़ों पे कोई पत्ते नहीं हैं
अभी भी पक्षिमी हवाएं चल रही हैं
मेरे जैसे वो गिलहरी भी इश्क़ में लगती , उसने भी ऐलान कर दिया , बहार आने को है
मन आन्दित तो हर दिन दिवाली
सारा खेल तो मन का ही है , कुछ भी कर सकता है
वही कमरा , वही बिस्तर , वही परदे , कभी स्वर्ग के जैसे तो कभी नरक के

तो तुम कैसे हो , शोना
जानती हूँ , तुम भी कभी कभी सोचते हो मुझ से दूर जाने को
बहुत मरहले हैं जो तुम्हें पार करने हैं
पर तुम्हारे भी बस में नहीं है
तुम्हारे भी पग लंबे हो जाते हैं जब मैं साथ होती हूँ
कई द्वार खुल जाते हैं , कई राज़ प्रगट होते हैं
हमारी शक्तियाँ synchronize करती हैं और हमें बहुत आगे तक ले जाती हैं
एक लौ हो कर हम समस्त ब्रह्माण्ड में विचर आते हैं कुछ ही पलों में
जो कई कई लाइट यीर्ज़ light years  में नहीं हो सकता , इश्क़ में एक ही पल में हो जाता है
तुमने एक बार कहा था , कभी यह फैसला लेने की कोशिश मत करना
मेरे साथ होना है या नहीं
फैसले उसी को करने दो
सब फैसले उसी के हैं और सब हमारे हित में हैं
तो जानम , तुम भी , कुछ भी सोचना छोड़ दो
बस आनंद को पियो जो तुम्हारे और मेरे इश्क़ ने हमें बक्शा है
चलो , डूबते है न
बहुत गहरा
जहाँ सांस भी न आए

वो जो मैंने अपनी तस्वीर उतारी हैं न फिरोजी चश्में वाली
मुझे पता है , देख कर तुम ज़ोर ज़ोर से हँसे होंगे
सच पूछो तो मैंने वो जान बूझ कर लगाई
बहुत देर हो गई तुम्हारे ठहाकों की आवाज़ें नहीं सुनी
याद है पहले भी एक बार एक तस्वीर जो सबने पसंद की
और तुमने कहा ऐसे है जैसे मैट्रिमोनीयल ऐड दे रही हो
तुम्हारा कुछ भी कहना दुनिया भर से प्यारा है

हँसो , हँसो , ज़ोर से हँसो
हँसते हो तो तुम पे और भी ज़्यादा प्यार आता है

तुम्हारी अपनी
सोनप्रिया https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=945696118811633&id=100001137609210


https://muchchhu.wordpress.com/2016/02/25/%e0%a4%b8%e0%a5%8b%e0%a4%a8%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be/

ध्रुव गुप्त की कविता की परिभाषा

कविता क्या है, इस बारे में आमतौर पर आप कवियों-शायरों, काव्यशास्त्र के विद्वानों और आलोचकों से ही सुनते आए हैं। विद्वानों की परिभाषाएं किसी को भी समझ में ज्यादा नहीं आतीं। कभी-कभी कुछ पत्रिकाएं आम लोगों से भी पूछ लेती हैं कि कविता के बारे में वे क्या राय रखते हैं। कभी आपने सोचा है कि हमारे बड़े राजनेताओं, धर्मगुरुओं, समाजसेवियों और कलाकारों की कविता के बारे में क्या धारणा है ? तो आज पढ़िए कविता और कवियों के बारे में देश के कुछ बेहद ख़ास लोगों के एक्सक्लूसिव विचार ! अगर आपने इनके अलावा भी किसी के मत का पता है तो कृपया कमेन्ट बॉक्स में जोड़ दें !

नरेन्द्र मोदी - मितरों, कविता क्या होती है, यह मुझसे बेहतर कौन जान सकता है ? मैं बचपन में ही देश का प्रधान कवि बनना चाहता था। भले ही नसीब ने मुझे प्रधान सेवक की कुर्सी पर ला बिठाया हो, लेकिन कविता लिखना मैंने नहीं छोड़ा। पिछले दो सालों में मेरी हिंदी और अंग्रेजी कविताओं के कई संकलन आए हैं, जिनमें प्रमुख हैं - 'अच्छे दिन', 'काला धन', 'स्वाभिमानी भारत', 'मेक इन इंडिया', स्टैंड अप इंडिया' और 'स्टार्ट अप इंडिया'।

राहुल गांधी - एक रात मेरी मां मेरे कमरे मे आई और मुझसे वह कविता सुनाने को कहा जो मैंने 2014 के प्रधानमंत्री पद के अपने शपथ-ग्रहण समारोह के लिए बड़ी मेहनत से लिख रखा था। मेरी कविता सुनकर पहले तो वह आसमान की और ताकती रही और फिर फूट-फूटकर रो पड़ी।

अरविन्द केजरीवाल - कविता जीवन के राजपथ पर आम आदमी की मुहब्बत का अनिश्चितकालीन धरना है।

अन्ना हजारे - कविता भ्रष्टाचारी देह में कैद मन का जनलोकपाल है।

मनमोहन सिंह - कविता के बारे में तो मुझे कुछ ज्यादा पता नहीं, लेकिन अपनी कविता दूसरों को जबर्दस्ती सुनाना कश्मीर में आतंकी घुसपैठ जैसा ही गंभीर अपराध है। सोनिया जी के आदेशानुसार मैं इस दहशतगर्दी की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं !

सुषमा स्वराज - विदेश मंत्रालय से बढ़िया फुर्सत से कविता लिखने-सुनने की जगह देश में अभी कहां होगी ? अभी हम एक-एक पाकिस्तानी कविता के जवाब में दस-दस कविताएं सुना रहे हैं।

मोहन भागवत - कविता वस्तुतः ह्रदय की सनातन भावनाओं की 'घर वापसी' है।

योगी आदित्यनाथ - कविता 'लव जेहाद' की अवैध संतान है।

मनोहर लाल खट्टर - अपने हरियाणा में तो जाट भाईयों की लूटपाट और खाप पंचायतों के फैसलों से जितना कुछ बच जाय, बस वही कविता है।

मायावती - अब देखिये न, कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी अब मुलायम के उत्तर प्रदेश जैसी कानून-व्यवस्था है। दिन-दहाडे लोग सड़े अंडे और टमाटर मारकर चले जाते हैं।

मुलायम सिंह यादव - कविता दरअसल यू.पी.ए और एन.डी.ए के दरवाजों पर तीसरे मोर्चे की वह दस्तक है, जिससे सैफई महोत्सव का मायावी तिलिस्म पैदा होता है।

निर्मल बाबा - जिन कवियों की कविताएं नहीं चलतीं, वो श्रोताओं को कविताओं के साथ पनीर के गरम पकौड़े और धनिया की चटनी परोसें। कृपा आनी शुरु हो जायेगी।

बाबा रामदेव - कविता भावनाओं और सपनों का वह कालाधन है जो स्विस बैंक में नहीं, हमारे ह्रदय के किसी अज्ञात कोने नें दबा पड़ा है। शब्दों और शिल्प के अनुलोम-विलोम से ही इसे बाहर निकाला जा सकता है।

अससुद्दीन ओवैसी - शायरी मेरे लिए अबतक बिहार और उत्तरप्रदेश के भदेस व्यंजनों में हैदराबादी बिरयानी की खुशबू घोलने की नाकाम कोशिश रही है। अब देखते है कि चड्ढी- तिलक तथा दाढ़ी- टोपी के तालमेल से शायद कोई कारगर परिभाषा निकल आए !

उमा भारती - कविता मन की मैली गंगा की सफाई का वह विराट अभियान है जो कल्पनाओं में शुरू होता है और कल्पनाओं में ही दम तोड़ देता है।

लालू प्रसाद यादव - कविता भावनाओं का जंगल राज है। बिहार में हमने छुट्टा कवियों के चरने के लिए चरवाहा विद्यालय भी खोला था। ससुरा कौनो कविया एडमिशने लेने नहीं आया।

नीतीश कुमार - कविता भावनाओं का सुशासन है। जब लोग उसके साथ सड़कों पर नहीं, शब्दों में अनाचार करते हैं तो कविता का जन्म होता है।

अनुपम खेर - कविता असहिष्णुता को सहिष्णुता की तरह प्रस्तुत करने की वह राष्ट्रवादी कला है जो आपको पलक झपकते 'पद्मभूषण' बना दे सकती है।

सलमान खान - अब छोड़िए भी सर, मेरे अपने लिए कविता के मतलब की तलाश वैसा ही मुश्किल काम है, जैसा जवानी में बीवी की तलाश। दोनों हाथ में आते-आते फिसल जाती है।

ध्रुव गुप्त
की फेसबुक वाल से साभार

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मोहन थानवी की कलम से

अपने आस पास की ठंडी हवा से पूछा मैंने
वह
प्राणवायु देने वाले वृक्षों को क्यों छूना चाहती है ?
जवाब में वह मेरे कानों को ऐंठती हुई बोली
क्यों रे आदमी ; जानता नहीं तू ?
वृक्षों से तू ही नहीं मैं भी जीवन पाती हूं
वो मुझे पास पाकर झूमते हैं
और
तुझे देखकर भी गाते हैं
मगर
मैं हमेशा निहत्थी होती हूं
और तेरे पास कभी कभी तीखी कुल्हाड़ी होती है
ऐसा दृश्य देख कर ही मैं सिहर जाती हूं
और
ठंडी होने के बावजूद
अपने प्राणदाता से लिपट लिपट सिसकती-सिसकाती हूं।

- मोहन थानवी
की फेसबुक वाल से साभार

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1083706991660635&id=661237997240872

गुलजार

रोज़ आता है ये बहरूपिया,
इक रूप बदल कर,
रात के वक़्त दिखाता है 'कलाएँ' अपनी,
और लुभा लेता है मासूम से लोगों को अदा से!

पूरा हरजाई है, गलियों से गुज़रता है,
कभी छत से,
बजाता हुआ सीटी --
रोज़ आता है, जगाता है,
बहुत लोगों को शब भर!

आज की रात उफ़क से कोई,
चाँद निकले तो गिरफ़्तार ही कर लो!!

-गुलज़ार

स्मृति

आँगन मे जलते हुए काठ के उपर
हाथों को सेंक लिया

बढ़ती ठंड और जमते कोहरे के बावजूद
दरवाज़े को खोल दिया

धीमी बारिश से गीली हुई मिट्टी पे खुद के ही पदचिह्न को देख
यूँ ही मुस्कुरा दिया,

अरसा हो गया था उनसे मिले हुए

उनके इंतेज़ार मे , एक बार फिर,
मुड़ के खुले हुए दरवाज़े को देख लिया ....

- The Curious Wizard



The curious wizard की फेसबुक वाल से साभार

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1697148993876058&id=1492080004382959

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

सपने

#हाँ_मै_सपने_देखता_हूँ....

वो जनवरी 2003 की एक सर्द शाम थी...एक किशोर वय बालक अपने पिता के साथ बैठा अलाव ताप रहा था....उत्तर भारत की ठण्ड में अगर आग का सहारा मिल जाय जो ऐसा प्रतीत होता है... कि जैसे भूखे को भोजन और प्यासे को पानी मिल गया हो....!

बातों के दरमियां जब पिता ने पूछा की बोर्ड एग्जाम की तैयारी कैसी चल रही है तब लड़के ने जबाब में कहा ठीक ही है... अभी काफी कुछ रिवाइज करना बाकि है पर फिर भी ये यकीन है कि तैयारी सही चल रही है...!

अच्छी बात है बेटा....खूब मन लगा के तैयारी करो...तुम्हे फेल नही होना है कभी भी....मेरे नाम पर कभी धब्बा न लगने देना....!

यह वह दौर था जब बोर्ड एग्जाम्स में सेल्फ सेंटर का चलन नही था और गांव देहात में बोर्ड एग्जाम पास करने वाले लड़को को काबिल समझा जाता था...!

अरे नही पापा आप टेंशन न लीजिये...मै कभी भी आपको लज्जित नही होने दूंगा....आप तो मेरे लिये दुनिया के सबसे अच्छे पापा है न....लड़के की आवाज में बहुत सारी ख़ुशी झलक रही थी...!

और तुम मेरे लिये दुनिया के सबसे अच्छे बेटे हो....यह कहकर पिता ने पुत्र को गले से लगा लिया...!

यार मै सोच रहा हूँ... की आपकी माँ और आपके लिये यानि हम सबके लिये एक नया घर बनवाया जाय... ताकि जब तुम्हारी शादी हो तो नई बहू को कोई दिक्कत न हो....!

पापा आप भी न अभी मेरी उम्र ही कितनी है...अभी तो मुझे खूब पढ़ना है आगे बढ़ना है और आपका नाम रोशन करना है.... !

फिर भी बेटा मेरा यह सपना है की तुम्हें एक नया घर बना के दूँ.... जहाँ हम सब मिलजुल कर एक साथ राजी ख़ुशी से रह सकें.... वक्त को किसने देखा है.... कौन जाने कब क्या हो जाये....?

उस लड़के के पिता जी ने सच कहा था...वक्त को किसने देखा है.... 30 मई 2003 की उस दुःख भरी सुबह में उस लड़के के पिता जी एक आकस्मिक दुर्घटना का शिकार होकर चल बसें..... लड़के के ऊपर इस घटना का बड़ा भयानक असर पड़ा.... अंदर ही अंदर वह टूट सा गया..बोर्ड एग्जाम भी उसने पास कर लिया था पर उसके पिता जी उसके साथ नही थे....किसी दार्शनिक ने कभी कहा था की इंसान मर जाया करते है पर सपनें कभी नही मरा करते.....यह बात उस किशोर वय लड़के को पता थी.....उसने उसी समय एक निर्णय ले लिया था की आज नही तो कल...इस साल नही तो 5 साल 10 साल बाद जब वह सक्षम हो जायेगा तो अपने पिता के सपनें को जरूर पूरा करेगा....किसी भी हालत में किसी भी सूरत में उसे उन मुरझा चुके सपनों को हकीकत के पानी से सींच कर जिन्दा रखना होगा....!

कई साल बीत गए...कई पतझड़ आये कई बसन्त चले गए....पर वह सपना उस लड़के के मन में हमेशा पलता रहा......और एक दिन उसने सच में उस सपनें को पा लिया.... उन सपनों को हकीकत का अमली जामा पहना कर अपने पिता के अधूरे सपनों को आखिर कार पूरा ही कर दिया.....!

आप जानना चाहोगे वो लड़का कौन है..... रुकिये जरा पोस्ट पढ़ते रहिये....जल्द ही उस लड़के से आपको मिलवाता हूँ....!

पिछले दिनों जब मै फेसबुक से तनिक समय के लिये दूर चला गया था तो मेरे तमाम सुधी मित्रों और चाहने वालों में एक परेशानी सी दौड़ गयी....अरे क्या हुआ हीरा ठाकुर किधर निकल लिये....कुछ ने मेरी वाल पर आकर पूछा कुछ ने इनबॉक्स किया कुछ एक ने तो कॉल भी किया.....मै शुक्रगुजार हूँ उन सभी लोगों का जिन्हें मेरी इतनी फ़िक्र है.... यकीन मानिये मुझे इस बात से बेहद ख़ुशी है की दुनियां में न जाने कितने लोगों के लिये मै एक आम सा भारतीय नागरिक कितना खास हूँ.... यह आप सबका प्यार है जो मजबूती से खड़ा रहने देता है वरना जालिम वक्त की हवाओं ने तो मुझे कब का उड़ा दिया होता....!

हाँ तो मेरे गायब रहने की वजह यही थी कि मै उस किशोर वय लड़के के सपनों को सजा रहा था....उसकी छोटी छोटी आँखों ने कभी जो सपनें देखे थे उनमे हकीकत की खुसबू मिला रहा था....जी रहा था एक एक लम्हे को जिनके लिये उसने बरसों इंतजार किया....और अंतत उसे हासिल कर ही लिया...!

दोस्तों वह लड़का मै ही हूँ.... जिसने अपने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने का एक छोटा सा प्रयास किया है..... पुश्तैनी जायदाद और मकान से इतर खुद के बलबूते पर पिता के ख्बाव को सजाने वाला बेटा मै ही हूँ..... शुरू में तीन बेडरूम हाल किचन की प्लानिंग के साथ शुरू किया गया घर बढ़ते बढ़ते 5 छोटे बड़े कमरे हाल किचन और घर के आगे लान तक आकर रुका....!

लान सहित करीब 2000 इस्क्यार फीट में फैले मेरे मकान यानि मेरे पापा के मकान की जब 4 दिन पहले छत पड़ी तो पल भर के लिये मुझे ऐसा लगा की मैने दुनियां जहाँ की हर ख़ुशी पा ली....मुझे वो सब कुछ मिल गया जो मै नही मेरे पिता जी चाहते थे....जिस दिन छत पड़ी उसके अगले दिन सुबह उसी छत पर नम आँखो के साथ खड़े होकर सुदूर आकाश में सिर्फ एक बार अपने पिता की छवि को देखने की कोशिस कर रहा था....और साथ ही साथ परम् पिता परमेश्वर से यह शिकायत भी कर रहा था की आखिर उन्होंने मेरी ख़ुशी मेरे पापा को मुझसे क्यों छीन लिया...!

आज अगर पापा मेरे साथ होते तो उन्हें मेरे इस काम से कितनी ख़ुशी मिली होती....और उन्हें अपने इस नालायक और शैतान बेटे से शायद कोई भी शिकायत न होती.....पर होनी को कौन टाल सकता है... ईश्वर की मर्जी के सामने किसका जोर चला है...!

सपनों को पूरा करती हुई यह कहानी जितनी अच्छी है उससे कही अधिक प्रयास  अपने पिता के सपनें को पूरा करने के लिये मैने किया है.... एक एक पाई जोड़ के अपने ख़र्चों को बेहद कम करके मैने यह हासिल किया हैं.... मेरे दोस्त जब वीक इंड पर पार्टी के लिये मूवी के लिये जाते थे तब मै कोई न कोई बहाना बना के उन्हें टाल देता था....घर पर ही कोई न कोई मूवी देख लेता था या फिर आप सबके लिये पोस्ट लिख देता था....हर 6 महीने पर जब दोस्त फोन बदल देते थे तो मै अपने दो साल से अधिक पुराने फोन को देख के खुद को समझा लिया करता था....कोई दोस्त जब नई स्पोर्ट बाइक लेकर आता था तो मै अपनी 5 साल पुरानी बाइक को देख असहज हो जाता था पर फिर भी उसे धो पोछ के चमकाने की कोशिश कर लिया करता था...दोस्त जब हॉलीडेज पर हिल स्टेशन जाने का प्लान करते तो मै कोई न कोई आफिस की मजबूरी बता के टाल जाया करता था.....हमेशा स्लीपर क्लास से ही सफर किया....कभी ब्रांडेड कपड़े नही पहने....3 से 5 किलोमीटर पैदल चल जाया करता था....बाइक को महीनों खड़ी करके सिटी बस से सफर किया करता था....जॉब पर भी हरदम कूल रहकर बॉस की झिड़कियां सुनी ताकि आय का एक नियमित स्त्रोत बना रहे....हर वो काम खुसी से किया पूरी लगन से किया जो मेरे पापा के सपनों को पूरा करने में मेरी मदद कर सकें...!

मेरी यह पोस्ट लिखने का मकसद सिर्फ यही है की आज का युवा जो तनिक सी दिक्कत आने पर परेशान हो जाता है...हिम्मत हारने लग जाता है उसे अपने आस पास नजर उठा के देखना चाहिये.....न जाने कितने लोग अपने सपनों को पूरा करने के लिये जी जान से लगे हुए है.... मै भी उनमे से एक हूँ... कई बार थक जाता हूँ.... निराश भी होने लगता हूँ पर हिम्मत कभी भी नही हारता हूँ.... क्योंकि मै सपनें देखता हूँ मन ही मन  उन्हें पूरा होते हुए देखता हूँ और एक दिन वो हकीकत बन कर आ ही जाते है....!

एक मकान को मकान ईट सीमेंट बना देते है पर उसे घर बनाने में किसी का प्यार भी बहुत जरूरी होता है... मै एहसानमन्द हूँ अपने उस खास दोस्त का जिसनें मुझे हरदम सपोर्ट किया....हरदम मेरा ख्याल रखा और हरदम मेरी फ़िक्र की....पब्लिक में कभी कहा नही पर आज सबके सामने कहता हूँ.... आई लव यु माय डियर फ्रेंड....तुम मेरे लिये बेहद खास हो और हरदम रहोगी...!

कल मित्र सत्या कर्ण ने एक बड़ी बढ़िया बात कही की मै सपनें देखता हूँ...उन्ही में जीता हू. यह्ह्ह् मह्ह्ह् ब्रो मै सपनें देखता हूँ और उन्हें पूरा करने की कूवत भी रखता हूँ..!

हाँ मै सपनें देखता हूँ....!

विशाल सिंह   सूर्यवंशम       की फेसबुक वाल से  साभार

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