From Sonpriya Series........
सुनो शोना
आज मेरा मन है डूब जाने का
बहुत गहरा , इतना गहरा कि सांस भी न ले सकूँ
कान , नाक , मुहँ , सब बंद हो जाएँ
बस डूबने का अहसास बचा रहे
जितना गहरा डूबो उतना ही गहरा आनंद
तुमने कहा था मैं फ़ना होने के रास्ते पे निकल चुकी हूँ
एक बार चल दो तो कोई लौटना नहीं , कोई ऑप्शन ही नहीं लौटने की
एक बार आनंद का अमृत चख लौटना भी कौन चाहेगा
यह तो ऐसी लत है जिसका कोई दवा -दारु नहीं
कुछ दिन पहले तुम्हारे भेजे हुए सब संदेसे जो कहीं खो गए थे , अचानक से बाहर आ गए
जैसे समुन्दर अपनी लहरों के साथ ढेर सारी सीपियाँ छोड़ गया हो रेत पे
एक -एक सीपी खोल कर एक -एक मोती निकाल रही हूँ और डूबती जा रही हूँ
किसी दिन यह समुन्दर सीपियाँ यहाँ छोड़ कर मुझे उठा कर ले जाएगा
पर अभी कुछ वक़्त है फ़ना होने में
कुछ काम बाकी हैं अभी
हाँ , यूँ तो काम कभी खत्म नहीं होते , ज़िंदगी के साथ -साथ चलते रहते हैं
पर मैंने एक तारीख़ मुकरर्र कर ली है
जानती हूँ , अपने हाथ में नहीं है कुछ भी , करने वाला तो सब वो ही है
पर फिर भी एक रेखा खींच देना कुछ तो रंग लाएगा
अरे नहीं , घबराओ मत , मैं मरने वाली नहीं अभी
वैसे भी यह मरना कोई मरना थोड़े ही है , तुम्ही तो कहते हो
असल मरना तो जीते जी होता है , अहं का मर जाना , अपनी मैं से ऊपर उठ जाना
अरे अरे , तुम तो उदास हो गए , ऐसे ही मैं भी हो गई थी जब एक बार तुमने कहा था
मैं शायद मरने वाला हूँ
और दूसरे ही पल मुझे लगा अगर तुम मर गए तो मेरा बेटा बन कर लौटोगे
नौं महीने मेरी कोख में रहोगे , इतना करीब , इतना ज़्यादा करीब
मेरी सांस में सांस लोगे
मेरी धड़कन में धड्कोगे
सब से ज़्यादा निश्चल प्यार एक औरत अपने बेटे को करती है , बिना किसी आस उम्मीद के
क्या पता मैं तुम्हारी बेटी बन कर आऊँ
जब तक सच में नहीं मर जाते , आना जाना तो लगा ही रहेगा , किसी न किसी रूप में मिलते ही रहेंगे
तो मौत कोई डरने की चीज़ नहीं है , उतस्व है , ज़िंदगी के जैसे ही
अवसर है खुद के , खुदा के एक कदम और करीब होने का
अब तुम कहोगे , माते आज इतने प्रवचन क्यों दे रही हो , यह तो मेरा क्षेत्र है
तुम्हारा मुर्शिद तो मैं ठहरा
हाँ , मुर्शिद भी , मेहबूब भी
कई बार सोचती हूँ , अब न करूँ तुम से मोहब्बत
तुम बहुत खराब हो
कितने -कितने दिन छोड़ के चले जाते हो
न कोई संदेसा , न खत , न पत्र , न कोई खोज ख़बर
पर , जानू , मजबूरी हो चुकी है मेरी
तुम से नहीं करती मोहब्बत तो खुद से भी नहीं कर पाती
सारा जग जैसे सूना -सूना हो जाता है
न चिड़ियाँ चहकती हैं , न फूल महकते हैं , न चाँद मुस्कुराता है
मीठा , मीठा नहीं लगता , नमकीन , नमकीन नहीं लगता
जुबान जलती है तो पता चलता है चाय गर्म थी
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
तुमसे प्यार करती हूँ तो सारा ब्रह्माण्ड नाचता रहता है , गीत गाता रहता है
तुम्हारे इश्क़ में सारा जग है इबादतगाह , जहाँ मर्ज़ी बैठ कर कर लो सजदा
हर शै दिव्य , अलौकिक , क्या चेतन , क्या अचेतन
हर मौसम खुशगवार
आजकल ऐसे लग रहा है जैसे बसंत ऋतू हो हालंकि पेड़ों पे कोई पत्ते नहीं हैं
अभी भी पक्षिमी हवाएं चल रही हैं
मेरे जैसे वो गिलहरी भी इश्क़ में लगती , उसने भी ऐलान कर दिया , बहार आने को है
मन आन्दित तो हर दिन दिवाली
सारा खेल तो मन का ही है , कुछ भी कर सकता है
वही कमरा , वही बिस्तर , वही परदे , कभी स्वर्ग के जैसे तो कभी नरक के
तो तुम कैसे हो , शोना
जानती हूँ , तुम भी कभी कभी सोचते हो मुझ से दूर जाने को
बहुत मरहले हैं जो तुम्हें पार करने हैं
पर तुम्हारे भी बस में नहीं है
तुम्हारे भी पग लंबे हो जाते हैं जब मैं साथ होती हूँ
कई द्वार खुल जाते हैं , कई राज़ प्रगट होते हैं
हमारी शक्तियाँ synchronize करती हैं और हमें बहुत आगे तक ले जाती हैं
एक लौ हो कर हम समस्त ब्रह्माण्ड में विचर आते हैं कुछ ही पलों में
जो कई कई लाइट यीर्ज़ light years में नहीं हो सकता , इश्क़ में एक ही पल में हो जाता है
तुमने एक बार कहा था , कभी यह फैसला लेने की कोशिश मत करना
मेरे साथ होना है या नहीं
फैसले उसी को करने दो
सब फैसले उसी के हैं और सब हमारे हित में हैं
तो जानम , तुम भी , कुछ भी सोचना छोड़ दो
बस आनंद को पियो जो तुम्हारे और मेरे इश्क़ ने हमें बक्शा है
चलो , डूबते है न
बहुत गहरा
जहाँ सांस भी न आए
वो जो मैंने अपनी तस्वीर उतारी हैं न फिरोजी चश्में वाली
मुझे पता है , देख कर तुम ज़ोर ज़ोर से हँसे होंगे
सच पूछो तो मैंने वो जान बूझ कर लगाई
बहुत देर हो गई तुम्हारे ठहाकों की आवाज़ें नहीं सुनी
याद है पहले भी एक बार एक तस्वीर जो सबने पसंद की
और तुमने कहा ऐसे है जैसे मैट्रिमोनीयल ऐड दे रही हो
तुम्हारा कुछ भी कहना दुनिया भर से प्यारा है
हँसो , हँसो , ज़ोर से हँसो
हँसते हो तो तुम पे और भी ज़्यादा प्यार आता है
तुम्हारी अपनी
सोनप्रिया https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=945696118811633&id=100001137609210
https://muchchhu.wordpress.com/2016/02/25/%e0%a4%b8%e0%a5%8b%e0%a4%a8%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be/