सोमवार, 28 सितंबर 2015

जोग लिखी

दुर्लभ अपनत्व
आंखें मलता
जीवन संकल्प
कालचक्र
लिख रहा
नये पृष्ठ
पीछे छूटता
अन्तिम सत्य
ओ यायावर ,
रहे याद
कि
दिशाओं को
भी
खुला आसमान चाहिए ।

शनिवार, 19 सितंबर 2015

तुमसे

अनुपम गुप्त#190920150841
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शब्द बोलते हैं
माटी सुनती है
पुरवा डोलती है

मन सोचता है
धड़कन सुनती है
चूड़ियों की खनक

वक्त कहता है
आज सुनता है
स्वयं को सम्बोधित राग

समय के तराजू में
कुछ छूटी
कुछ याद आईं
कुछ खट्टी
कुछ मीठी
कुछ कच्ची
कुछ पक्की
कुछ कहती
कुछ सुनती
यादें

तुम सब जानती हो
समय सब जानता है ।

An abstract oil painting
-Anupam Gupta

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

पार

अधर में
खग चहकते
गाती
नदिया धार

प्रतिध्वनित
कितने क्षण
ध्वनियों की
परिधि पार

एक लहर
जन्म लेते ही
देती जन्म
लहरों को
टूटती सीमाएँ
चंचल मन के पार

Thanks for your visit.
And below is an oil painting
by Anupam Gupta

पार

अधर में
खग चहकते
गाती
नदिया धार

प्रतिध्वनित
कितने क्षण
ध्वनियों की
परिधि पार

एक लहर
जन्म लेते ही
देती जन्म
लहरों को
टूटती सीमाएँ
चंचल मन के पार

Thanks for your visit.
And below is an oil painting
by Anupam Gupta

रविवार, 13 सितंबर 2015

बहता रहा

       बहता रहा
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शाम को,
चाँद चुपचाप झाँका;
आकाश
और नीचे उतर आया ;
वह
शान्त
मधु सा
बहता रहा-
मेरे अंतस में
अविराम ।।
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""""""""""
धैर्य पूर्वक समय देने के लिए आपका आभार।।  स्वागतम् ।।
और आपको यह नवीनतम चित्र अवश्य पसंद आयेगा ।
An abstract digital creation - Anupam Gupta

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

।। हूँ ।।

समय दस्तक देता है
समय जीवन बदल देता है
मैं ,  वह समय ही तो हूँ ।

प्रेम दस्तक देता है
प्रेम जीवन बदल देता है
मैं ,  वह प्रेम ही तो  हूँ ।

कवि दस्तक देता है
कवि सारी दुनिया बदल देता है
मैं वह कवि ही तो हूँ ।

आओ,  नये क्षितिज की सृष्टि करें ।
आओ,  समय    के     पार    चलें।।

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

मन ही राखो

जिंदगी का तराना
रेत सा झरता रहा

आँखों के आँसू
सन्नाटे में गिनता रहा

महफिलों में तुम
कहकहे पर कहकहे लगाते रहे
मैं अन्दर ही अन्दर काँपता रहा
शायद ही हो तुम्हें पता
तालियों की गड़गड़ाहट से
पेट नहीं भरता
इसीलिए
निज मन की व्यथा
मन ही राखो गोय
लिखता रहा ।।

बुधवार, 2 सितंबर 2015

कीमत

स्मृति की
प्रयोगशाला से
दिल के
टूटने की चीख
हर चीज की एक कीमत होती है ।

यन्मण्डलम्

धीरे से
हौले से
उतरा आकाश
भरता शून्य
दिव्य
प्रकाशित मन
यन्मण्डलम् दीप्तिकरं विशालम्

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

फिराक 28 अगस्त

28 अगस्त को भारतीय उपमहाद्वीप के महान कवि गोरखपुरी का जन्म हुआ था । फिराक परम्परा की गहरी समझ और आधुनिक संवेदना के मेल की वजह से न केवल अद्वितीय कविता की रचना कर पाए बल्कि बाद के कवियों के लिए भी एक मिसाल बने रहे ।उनके बाद की उर्दू की कविता पर सबसे गहरा असर फिराक का ही है ।
     प्रस्तुत हैं फिराक के कुछ अश्आर .......

WhatsApp के बोल

WhatsApp के बोल

कांचीपुरम के 17वीं शती के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ ‘राघवयादवीयम्’ एक अद्भुत ग्रन्थ है।

इस ग्रन्थ को
‘अनुलोम-विलोम काव्य’
भी कहा जाता है,

इसमें केवल 30 श्लोक हैं,
इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है
और
विपरीत क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा।

इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक,
लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ,
तो बनते हैं 60 श्लोक।

उदाहरण के लिए देखें :

अनुलोम :
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ 1 ॥

विलोम :
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ 1 ॥

अनुलोम :
साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ 2 ॥

विलोम :
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ 2 ॥

क्या ऐसा कुछ अन्य भाषा में रचा जा सकता है ??? समस्त भाषाओं की जननी संस्कृत की विलक्षणता से सभी परिचित हों .......