बुधवार, 30 दिसंबर 2015

यात्रा

लकीरें जो कहतीं हैं
बोलकर
शब्द शब्द
बनतीं धारणाएँ
होता सत्य का संधान
तमस से ज्योति की ओर

रविवार, 20 दिसंबर 2015

सच

इतिहास की स्लेट पर
परिवर्तन की वर्णमाला;
पानी के अन्दर संगीत
और
कील की तरह गड़ता
सच । ।

सिक्के की तरह

इस उम्र में भी
मैं ठीक ठाक हूँ
तन से भी
मन से भी
जेब में रखे खोटे सिक्के की तरह ।

पवित्रता की तलाश में

पवित्रता की तलाश में
समय की गर्द से बचे हुए
शब्द;
आग की हँसी
ऊर्जा में समाया
मैं तो यहाँ हूँ । ।