बूँद
समुद्र में गिरी
और
सागर हो गई;
हे प्रभु!
मुझे
सागर होने का साहस देना ।
रविवार, 30 अगस्त 2015
शुक्रवार, 28 अगस्त 2015
अभी
आकुल व्याकुल
सुधि हीन
नहीं कल
प्यारे मोहन ,
अब तो आओ
बसी नयनों में छवि तेरी
प्रकाश बन
हृदय में समा जाओ ।
दूर कहीं
बजती वंशी तेरी
झंकार बन
कानों में समा जाओ ।
आकुल व्याकुल
नहीं कल ;
कल नहीं
आज नहीं
अभी
मेरे मन को
दिव्य बना जाओ ।
ओ मोहन न्यारे !!!
A digital abstract creation
- Anupam Gupta
गुरुवार, 27 अगस्त 2015
सुनती है माटी
बंजारे
आवारा
चक्षु उन्मीलित
जब खुलते हैं
मिट्टी आकार लेती है
शब्द खिलते हैं ।।
शब्द खिलते हैं
एक रूह में बदल
करते ग्रहण
आकार नया
बजती बांसुरी
बसती
इक दुनिया
नई
खुलते नये आयाम
चतुर्दिक ।।
सुनती है माटी
बोलते हैं शब्द ।।
An abstract digital art
- Anupam Gupta
शनिवार, 22 अगस्त 2015
पुनः
जीवन
एक जुनून
जीवन
एक ज्योति
जीवन
एक आनन्द
परम आनन्द;
फलता
और
फूलता ।
जीवन जीने का कोई अवसर मत जाने दो ।
शास्त्रों से पूछ पूछ नियम बनाना छोड़ो ।।
तुम तुम हो
और
कृष्ण कृष्ण ;
राम राम हैं
और
तुम भी तो नहीं हो कम इंसान ।
इसलिए
गिरा दो
सारी आज्ञाकारिता को
और
पुनः प्राप्त करो
स्वयं को । ।
शुक्रवार, 21 अगस्त 2015
सम्पूर्ण
सांसें ही नहीं ;
पूरा जीवन हो तुम ।
धड़कन ही नहीं ;
पूरा जीवन हो तुम ।
यादें ही नहीं ;
पूरा जीवन हो तुम ।
कविता ही नहीं ;
पूरा जीवन हो तुम ।
केवल जीवन नहीं ;
सम्पूर्ण सत्य हो तुम ।।
उजाले से
फैला
दूर तक
अंतिम
काला प्रकाश
लगा लिया है
मैंने
एक टीका
चुरा , तुम्हारी आँखों के काजल से
अब
लगता है
डर
उजाले से ;
है सत्य यही
शायद
मौन रहना
नियति हमारी
अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ।
नदी आज भी बहती है
दूर कहीं
एक नदी बहती है
जिसके किनारे
राम भरत संग खेले
बहु धनुहीं तोरीं ।
दूर कहीं
एक नदी बहती है
जिसके पार
मृग स्वर्ण
छल अपार ।
दूर कहीं
एक नदी बहती है
समीप जिसके
धरती समाई सीता
राम ने ली जल समाधि ।
दूर कहीं
एक नदी बहती है
जिसके किनारे
कान्हा ने वंशी बजाई
जग को लुभाई ।
दूर कहीं
एक नदी
समुद्र में समाती है
कृष्ण समाधिस्थ होते हैं
शिकारी के शिकार में ।
आज भी
वह
" एक नदी बहती है "
दूर आसमान में
बार बार
एक ही गीत बजता है
कहते जिसे
प्यार
बार बार
एक ही बांसुरी बजती है
कहते जिसे
प्यार
दूरियां बढ़ती जाती
अंततः
प्रेम करना शेष रहता है
और
कुछ क्षणों का प्यार
एक
लंबी
अंतहीन
कविता में ढल जाता है
दूर आसमान में
चांद पर उग आता है
एक शब्द
जिसे तुम कहती हो
प्यार
जिसे मैं भी करता प्यार ।।
गुरुवार, 20 अगस्त 2015
आस्मां और भी हैं
तोड़ता
जोड़ता
टुकड़ों टुकड़ों
बंटा
मेरा
मन
पाकर
साथ तुम्हारा
पुनः पुनः
जुड़ जाता है
एक नया आयाम
क्षितिज के पार
आस्मां और भी है
जिंदगी
बहुत खूबसूरत है
जिंदगी ;
जिंदगी
बहुत खूबसूरत है ।
सुबह से शाम तक
शाम से रात तक ;
बहुत सुहावनी है जिंदगी ।
कौन करता आपको प्यार
प्यार से नहीं करता इनकार ;
ये खूबसूरत जिंदगी ।
बहुत खूबसूरत जिंदगी ।।
पर
जब आग से
दामन
लगे सुलगने
नफरतों के धर्म
लगें फैलने
सुबह से शाम तक
शाम से रात तक
सम्प्रदायों के ज्वालामुखी
उगलते हों बारूद
लोक के मंदिर में
बिछती बाजी
मौन हंगामी
तब भी
आपको
कौन करता प्यार
प्यार से नहीं करता इनकार
यही खूबसूरत जिंदगी ।
यह जिंदगी
जो
जीते हैं
खुद से प्यार करते हैं
दिलों में
नफरत नहीं
प्यार भरते हैं
बारूद नहीं
मुस्कान बिखेरते हैं
सुबह से शाम तक
शाम से रात तक
बहुत खूबसूरत है जिंदगी
जिंदगी बहुत खूबसूरत है । ।