सुनसान के सहचर ८
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शाप और वरदानों के आश्चर्यजनक परिणामों की चर्चा से हमारे प्राचीन इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े हैं। श्रवण कुमार को तीर मारने के दण्ड स्वरूप उसके पिता ने राजा दशरथ को शाप दिया था कि वह भी पुत्र शोक में इसी प्रकार विलख-विलख कर मरेगा । तपस्वी के मुख से निकला हुआ वचन असत्य नहीं हो सकता था, दशरथ को उसी प्रकार मरना पड़ा था । गौतम ऋषि के शाप से इन्द्र और चन्द्रमा जैसे देवताओंकी दुर्गति हुई । राजा सगर के दस हजार पुत्रों को कपिल के क्रोध करने के फलस्वरूप जलकर भस्म होना पड़ा । प्रसन्न होने पर देवताओं की भाँति तपस्वी ऋषि भी वरदान प्रदान करते थे और दुःख दारिद्र से पीड़ित अनेकों व्यक्ति सुख-शान्ति के अवसर प्राप्त करते थे ।
पुरुष ही नहीं, तप साधना के क्षेत्र में भारत की महिलाएँ भी पीछे न थीं। पार्वती ने प्रचंण्ड तप करके मदन-दहन करने वाले समाधिस्थ शंकर को विवाह करने के लिए विवश किया। अनुसूया ने अपनी आत्म शक्ति से ब्रह्मा, विष्णु और महेश को नहे-नहे बालकों के रूप में परिणत कर दिया । सुकन्या ने अपने वृद्ध पति को युवा बनाया। सावित्री ने यम से संघर्ष करके अपने मृतक पति के प्राण लौटाये । कुन्ती ने सूर्य तप करके कुमारी अवस्था में सूर्य के समान तेजस्वी कर्ण को जन्म दिया। क्रुद्ध गान्धारी ने कृष्ण को शाप दिया कि जिस प्रकार मेरे कुल का नाश किया है, वैसे ही तेरा कुल इसी प्रकार परस्पर संघर्ष में नष्ट होगा । उसके वचन मिथ्या नहीं गये । सारे यादव आपस में ही लड़कर नष्ट हो गए। दमयन्ती के शाप से व्याध को जीवित ही जल जाना पड़ा । इड़ा ने अपने पिता मनु का यज्ञ सम्पन्न कराया और उनके अभीष्ट प्रयोजन को पूरा करने में सहायता की । इन आश्चर्यजनक कार्यों के पीछे उनकी तप शक्ति की महिमा प्रत्यक्ष है।
- श्रीराम शर्मा आचार्य
क्रमशः
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#अनुपम_गुप्त
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