शनिवार, 11 मई 2019

विनम्रता की ताकत

एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया । नदी को लगा कि मुझ में इतनी ताकत है कि मैं पहाड़ , मकान , वृक्ष, पशु , मानव आज सभी को बहा कर ले जा सकती हूं। नदी ने बड़े ही गर्वीले  और अभिमान पूर्ण  शब्दों में समुद्र से कहा, "  बताओ,  मैं तुम्हारे लिए क्या लाऊं ? जो भी तुम चाहो मकान , वृक्ष पर्वत,  पशु , मानव आदि , जो तुम चाहो उसे मैं जड़ से उखाड़ कर ला सकती हूं ।"
   समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है। उसने नदी से कहा, "  यदि  तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो तो थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ ।"
   समुद्र की बात सुनकर नदी बोली, "  बस इतनी सी बात है । अभी आपकी सेवा में हाजिर करती हूं।"
    नदी ने अपने जल का पूरा जोर  (वेग) घास पर लगाया पर घास नहीं उखड़ी।  नदी ने एक बार , दो बार अनेक बार जोर  लगाया । सभी प्रयत्न किए,  पर बार बार असफलता ही हाथ लगी । आखिर में हारकर नदी समुद्र के पास पहुंची और बोली ,"  मैं  मकान,  पहाड़ आदि को तो उखाड़ कर  ला सकती हूं,  पर घास को उखाड़कर नहीं ला सकती ।  जब भी घास को उखाड़ने के लिए पूरा जोर लगा कर उस पर प्रहार करती हूं तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूं ।"
   समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान पूर्वक सुनी  और मुस्कुराते हुए बोले , " जो पहाड़ जैसे कठोर होते हैं वह आसानी से उखड़ जाते हैं किंतु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो उसे कोई प्रचंड वेग भी नहीं उखाड़ सकता।"
    नदी ने समुद्र की बातें धीरज से सुनीं और समझीं।  उसका घमंड चूर चूर हो गया।