शनिवार, 28 नवंबर 2020

दूरदर्शी

शनिवार, 28 नवंबर 2020

👉 दूरदर्शिता का तकाजा

जो आज का, अभी का, तुरन्त का लाभ सोचता है और इसके लिए कल की हानि की भी परवा नहीं करता वह उतावला मन विपत्तियों को आमंत्रण देता रहता है। प्रत्येक महान कार्य समयसाध्य और श्रमसाध्य होता है। उसकी पूर्ति के लिए आरंभ में बहुत कष्ट सहना पड़ता है, प्रतीक्षा करनी होती है और धैर्य रखना होता है। जिसमें इतना धैर्य नहीं वह तत्काल के छोटे लाभ पर ही फिसल पड़ता है और कई बार तो यह भी नहीं सोचता कि कल इसका क्या परिणाम होगा? चोर, ठग, बेईमान, उचक्के लोग तुरन्त कुछ फायदा उठा लेते हैं पर जिन व्यक्तियों को एक बार दुख दिया उनसे सदा के लिए संबन्ध समाप्त हो जाते हैं। फिर नया शिकार ढूँढ़ना पड़ता है। ऐसे लोग अपने ही परिचितों की नजर को बचाते हुए अतृप्ति और आत्मग्लानि से ग्रसित प्रेत−पिशाच की तरह जहाँ−तहाँ मारे−मारे फिरते रहते हैं और अन्त में उनका कोई सच्चा सहायक नहीं रह जाता। 

वासना के वशीभूत होकर लोग ब्रह्मचर्य की मर्यादा का उल्लंघन करते रहते हैं। तत्काल तो उन्हें कुछ प्रसन्नता होती है पर पीछे उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ही चौपट हो जाता है पर पीछे विरोध एवं शत्रुता का सामना करना पड़ता है तो उस क्षणिक आवेश पर पछताने की बात ही हाथ में शेष रह जाती है। स्कूल पढ़ने जाना छोड़कर फीस के पैसे सिनेमा में खर्च कर देने वाले विद्यार्थी को उस समय अपनी करतूत पर दुख नहीं वरन् गर्व ही होता है पर पीछे जब वह अशिक्षित रह जाता है और जीवन को कष्टमय प्रक्रियाओं के साथ व्यतीत करता है तब उसे अपनी भूल का पता चलता है। दूरदर्शिता और अदूरदर्शिता का अन्तर स्पष्ट है। उसके परिणाम भी साफ हैं। मन की अदूरदर्शिता एक विपत्ति है। जिसमें तुरन्त का कुछ लाभ भले ही दिखाई पड़े पर अंत बड़ा दुखदायी होता है। मन में इतनी विवेकशीलता होनी ही चाहिए कि वह आज की, अभी की ही बात न सोचकर कल की, भविष्य की और अन्तिम परिणाम की बात सोचें। जिसने अपने विचारों में दूरदर्शिता के लिए स्थान रखा है उसे ही बुद्धिमान कहा जा सकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जून 1962 

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